धीरे-धीरे मुझ पर इश्क का नशा इस कदर चढ़ गया रोज उसकी गलियों के चक्कर लगाने लगा भाव दिया ही नहीं मुझको कभी एक तरफा मोहब्बत मे घुटता रहा
बदले हुए इरादे से हैरान हूं आखिर वह कसमे वादे कहां खो गए मोहब्बत की पनाहों में अच्छी जिंदगी की ख्वाहिश थी मैं तन्हाई के समंदर में डूब कर रह गया हूं गलतफहमी से प्यार भरी मुस्कान झूठे वादों पर भरोसा हो गया जब सब कुछ लूट कर चली गई तब एहसास हुआ मेरे साथ धोखा हो गया